एक विचार है — पैट्रिक बेटमैन का।

एक अमूर्त छवि, एक रूपरेखा।

लेकिन असलियत में, 'मैं' नाम की कोई चीज़ नहीं है।

सिर्फ़ एक इकाई है... एक भ्रम।

हालाँकि मैं अपनी हरकतों को देख सकता हूँ, उन्हें महसूस कर सकता हूँ,

लेकिन मैं खुद को महसूस नहीं कर सकता।

मैं सिर्फ़ एक खाली खोल हूँ।

एक नकली मुस्कान, एक नकली आवाज़,

जो समाज के बनाए हुए नियमों के पीछे छुपी है।

मेरे अंदर कोई भावनाएँ नहीं हैं — कोई प्यार नहीं, कोई सहानुभूति नहीं।

मैं जैसा दिखता हूँ, वैसा हूँ नहीं।

मैं जो करता हूँ, उसका कोई मतलब नहीं है।

कभी-कभी मैं सोचता हूँ कि

शायद मेरा अस्तित्व ही एक भ्रम है।

एक नकली इंसान, एक नकली दुनिया में।

मैं तुम्हारे बीच चलता हूँ,

तुमसे बातें करता हूँ,

तुम्हारे जैसे कपड़े पहनता हूँ,

लेकिन मैं तुममें से नहीं हूँ।

मैं बस... यहाँ नहीं हूँ।

मैं कभी था भी नहीं।